दूसरी तरफ श्यामलाल को शुरू-शुरू में रामलाल की बेईमानी का इल्म तो नहीं हुआ, परन्तु जब उसके व्यवहार में परिवर्तन देखा तो पूरे माजरे को समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी. उसने रामलाल को समझाने और सही रास्ते पर लाने की कोशिश भी की, परंतु वह नाकाम रहा. उलटे रामलाल श्यामलाल से खफा हो गया और व्यापार में बंटबारे का बहाना ढूंढने लगा. बंटबारे में भी उसने बेईमानी की साजिश रची. श्यामलाल के हिस्से के व्यापार पर भी वह कब्जा कर बैठा. रामलाल के व्यवहार से दुखी होकर श्यामलाल ने शहर में दूसरी जगह अपना ठिकाना बनाया और रत्न के अपने व्यापार को नए सिरे से शुरू किया. ईमानदारी की नींव पर शुरू हुआ श्यामलाल का व्यापार जल्दी ही चल निकला. एक तरफ जहां श्यामलाल की ख्याति देश और विदेश में बढ़ने लगी, वहीं दूसरी तरफ रामलाल की करतूतों की पोल खुलने लगी थी. नकली रत्न के व्यापार के कारण रत्न बाजार में रामलाल की साख को जोरदार धक्का लगा और उसके व्यापार का दायरा सिमटने लगा. अंतत: नौबत यहां तक आ गई कि रामलाल को धन के अभाव में अपना घर, दूकान, सामान तक बेचना पड़ रहा था. जल्दी ही रामलाल के हाथ से सबकुछ निकल गया और वह परिवार सहित सड़क पर आ गया. अब रामलाल को अपने किए पर पछतावा हो रहा था परन्तु उसकी तकदीर ने जो खेल खेला था, उससे आसानी से पीछे आना उसके लिए संभव नहीं था. दूसरी तरफ श्यामलाल अपनी ईमानदारी और मेहनत की बदौलत रंक से राजा बन गया था. जब रामलाल की बदहाली की खबर श्यामलाल को लगी तो उसे बड़ा दुःख हुआ. पुरानी बातों को भूलकर वह भागा-भागा अपने बड़े भाई रामलाल के पास पहुंचा और रामलाल के लाख मना करने के बाद भी उसे परिवार सहित अपने पास ले आया.
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