एक मुसाफिर
एक मुसाफिर जंगल में चला जा रहा है। चारों ओर से भयंकर आवाजें आ रही है, घुप अंधेरा है। बड़ा डरावना माहौल है। तभी वह देखता है एक बारह पैर वाला हाथी चिंघाड़ता हुआ उसकी तरफ बढ़ा चला आ रहा है। बचने के लिए वो पीछे की तरफ हटता है। पीछे एक गहरा गड्डा है। मुसाफिर हटता हटता गहरे गड्ढे में जा गिरता है। लेकिन गिरते गिरते वो पेड़ की एक जड़ पकड़कर लटक जाता है। लटके लटके वो नीचे गड्ढे में देखता है, वहाँ एक भयंकर विषधर बैठा है फन फैलाए उसके इंतजार में। कब ये गिरे। और कब मैं इसका काम तमाम करूँ। मुसाफिर बुरी तरह से घबरा जाता है। इधर क्या देखता है कि पेड़ की जड़ को दो चूहे, जिनमें एक काला है और एक सफेद है मिलकर काट रहे हैं। ऊपर पेड़ पर एक शहद का छत्ता है जिससे रस टपककर पेड़ की जड़ पर गिर रहा है और पेड़ की जड़ जिसको ये मुसाफिर पकड़कर लटका हुआ है उससे रिसता हुआ शहद इसके हाथ पर आ रहा है। और ये शहद चाटने में लगा हुआ है। उधर उसको कोई व्यक्ति ऊपर से आवाज भी देता, बचाने की कोशिश करता है। लेकिन इसका सारा ध्यान तो शहद चाटने में ही लगा हुआ है। बचने का कोई उपाय ये नहीं करता। तभी चूहों ने पेड़ की जड़ काट दी और ये धड़ाम से गड्ढे में गिरा जहां बाकी का काम काले सर्प ने कर दिया और उसकी मौत हो गईं। कमोबेश ज्यादातर लोगों की यही कहानी है। कहानी में जो बारह पैर वाला हाथी है वो और कोई नहीं बल्कि काल का प्रतीक समय है जिसके बारह महीने है। सफेद और काले चूहे दिन और रात का प्रतीक है। जो निरंतर आदमी की उम्र को काट रहे है या कम कर रहे है। गड्ढे में जो सर्प है वो मौत का प्रतीक है। आदमी बचने को बच सकता है लेकिन वो विषय-वासनाओं का शहद चाटने में ही लगा रहता है। उसे सामने मौत दिखाई दे रही है लेकिन फिर भी वह विषय-भोगों में उलझा रहता है।
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