मैडम भीकाजी कामा
मैडम भीकाजी कामा का जन्म मुम्बई के धनिक पारसी परिवार में 24 सितम्बर, 1861 को हुआ था।
मैडम भीकाजी कामा इलाज के लिए 1901 में लन्दन गई थीं। वहाँ वह क्रांतिवीरों के सम्पर्क में आईं। उन्होंने देश को दासता के बंधनों से मुक्त कराने हेतु अपने पारिवारिक बंधनों को त्याग दिया। लन्दन में श्याम जी कृष्ण वर्मा के साथ मिल कर क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने लगीं। अपने ओजस्वी भाषणों से अंग्रेजों द्वारा भारत में किये जा रहे अत्याचारों की पोल खोली। लन्दन में गिरफ्तारी के भय से पेरिस जाकर वीर सावरकर व लाला हरदयाल आदि क्रांतिवीरों के साथ भारत की आजादी के संघर्ष में जुटी रहीं। 
जर्मनी में समाजवादियों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया एवं भारत की ओर से यूनियन जैक के स्थान पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में 'वंदे मातरम्' लिखा तिरंगा ध्वज फहरा कर सभी को अचंभित कर दिया। इस ध्वज पर सात सितारे, कमल, सूर्य व अर्धचन्द्र के चिह्न अंकित थे जोकि खुशहाल भारत के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करते थे। 1907 में विदेशों में फहराया जाने वाला यह प्रथम राष्ट्रीय ध्वज था। 
यह ध्वज आज भी पुणे में मराठा' व 'केसरी' समाचार पत्र के पुस्तकालय में सुरक्षित है। प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने पर मैडम कामा ने फ्रांस में घोषणा कर दी - 'भारत इस युद्ध में अंग्रेजों का साथ नहीं देगा'। अतः अंग्रेजों के दबाव में आकर फ्रांस की सरकार ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और युद्ध की समाप्ति पर ही 1918 में छोड़ा। चार वर्ष के कठोर कारावास से उनका शरीर जर्जर हो गया। अतः अपना अंतिम समय निकट देख अपनी मातृभूमि भारत की रज का स्पर्श पाने को वह आतुर हो उठीं। ब्रिटिश सरकार ने बड़ी कठिनाई से उन्हें भारत प्रवेश की अनुमति दी। भारत आने के कुछ माहबाद 16 अगस्त, 1936 को वह पंचतत्व में विलीन हो गईं।
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